उत्तराखंड

SGRRU: दर्शन शास्त्र, विज्ञान और प्रौद्योगिकी के आपसी संबंधों पर केंद्रित नेशनल सेमिनार, एक्सपर्ट्स ने बताए गुरू मंत्र

श्री गुरु राम राय विश्वविद्यालय में स्कूल ऑफ यौगिक साइंस एंड नेचुरोपैथी कि द्वारा भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद, शिक्षा विभाग, नई दिल्ली के सहयोग से एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। यह संगोष्ठी दर्शन शास्त्र, विज्ञान और प्रौद्योगिकी के आपसी संबंधों पर केंद्रित रही।  विश्वविद्यालय के प्रेसीडेंट श्रीमहंत देवेन्द्र दास जी महाराज ने संगोष्ठी के आयोजकों को शुभकामनाएँ प्रेषित की। विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. डॉ कुमुद सकलानी , कुलसचिव प्रो. डॉ लोकेश गंभीर ने संगोष्ठी के लिए शुभकामनाएँ प्रेषित की। इस अवसर पर मुख्य अतिथि एवं प्रमुख वक्ताओं को सम्मानित भी किया गया। इसके बाद योग के छात्रों ने योग प्रदर्शन भी किया। विश्व दर्शनशास्त्र दिवस पर आयोजित कार्यक्रम की शुरुआत डीन प्रो. डॉ कंचन जोशी ने विशिष्ट अतिथियों एवं वक्ताओं के साथ दीप प्रज्जवलित कर की। उन्होंने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा में योग केवल एक शारीरिक व्यायाम नहीं, बल्कि जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में संतुलन और समृद्धि प्राप्त करने का मार्गदर्शक है। योग और दर्शन का गहरा संबंध है, जिसे वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समझना आवश्यक है। संगोष्ठी में वक्ताओं ने योग दर्शन और ज्ञान मीमांसा, योग का मानव जीवन पर प्रभाव, विज्ञान और प्रौद्योगिकी की भूमिका जैसे विषयों पर अपने विचार प्रस्तुत किए।
संगोष्ठी के प्रथम सत्र की शुरुआत करते हुए प्रो० डॉ सुरेश लाल बर्णवाल, देव संस्कृति विश्वविद्यालय हरिद्वार ने ‘भारतीय ज्ञान परंपरा में योग’ पर विचार व्यक्त करते हुए कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा में योग का विशेष स्थान है। यह केवल शारीरिक व्यायाम या आसनों तक सीमित नहीं है, बल्कि आत्म-साक्षात्कार, मानसिक शुद्धि और आध्यात्मिक उन्नति का साधन है। योग का उल्लेख वेदों, उपनिषदों, भगवद गीता और पतंजलि के योगसूत्रों में विस्तार से किया गया है। योग ध्यान और एकाग्रता को बढ़ाने में सहायक है।आज के समय में योग का महत्व और भी बढ़ गया है। आधुनिक जीवनशैली में व्यस्तता, तनाव और मानसिक असंतुलन को दूर करने के लिए योग एक प्रभावी उपाय है। संगोष्ठी के अगले वक्ता डॉ० कामाख्या कुमार, उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय, हरिद्वार ने योग के विभिन्न आयामों पर चर्चा की। उन्होंने ‘योगा ऑफ द मैट’ विषय पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि योग केवल शारीरिक आसनों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह जीवन जीने की कला है। यह हमारे विचारों, भावनाओं और कार्यों में संतुलन और जागरूकता लाने की प्रक्रिया है। ध्यान और प्राणायाम केवल मैट तक सीमित नहीं रहते, बल्कि हमें कठिन परिस्थितियों में भी शांत और स्थिर रहने की शक्ति देते हैं। जीवन में संतुलन बनाए रखना, कठिनाइयों को स्वीकार करना और हर परिस्थिति में सकारात्मक दृष्टिकोण रखना भी योग का ही एक रूप है। उन्होंने प्रार्थना, पूजा ,उपासना, व्रत, अनुष्ठान, प्रायश्चित, दान, स्नान और तीर्थाटन के महत्व पर भी जानकारी दी ।  डॉ० रुद्र भंडारी, पतंजलि विश्वविद्यालय, हरिद्वार ने ‘कल्याण के लिए योग’विषय पर अपने संबोधन में बताया कि कैसे आधुनिक विज्ञान योग की प्रभावशीलता को प्रमाणित कर रहा है और इसे वैश्विक स्तर पर मान्यता मिल रही है। योग केवल शारीरिक व्यायाम नहीं, बल्कि संपूर्ण स्वास्थ्य और कल्याण का मार्ग है। नियमित योगाभ्यास से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। प्राणायाम और ध्यान मानसिक शांति प्रदान करते हैं, तनाव को कम करते हैं और एकाग्रता को बढ़ाते हैं। योग संतुलित जीवनशैली, अनुशासन और सकारात्मक दृष्टिकोण के लिए एक प्रभावी साधन है, जिससे व्यक्ति संपूर्ण रूप से स्वस्थ और आनंदपूर्ण जीवन जी सकता है। संगोष्ठी में विभिन्न विश्वविद्यालयो के शोध छात्र-छात्राओं ने शोध-पत्रों की प्रस्तुति की और उन पर विचार-विमर्श किया गया। अंत में विभागाध्यक्ष डॉ० सुरेन्द्र प्रसाद रयाल ने धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया। कार्यक्रम का संचालन रश्मि पांथरी और विशाल ने किया।

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