उत्तराखंड

नागपंचमी पर विशेष, ग्रहों के समान ही शक्तिशाली है नाग, जहां नाग देवता का वास वहां लक्ष्मी जरूर

मान्यता है कि जहां नाग देवता का वास होता है वहां लक्ष्मी जरूर रहती है नाग पंचमी के दिन नागों की पूजा करने से सर्प एवं विष के भय से छुटकारा मिल जाता है, गृह निर्माण पितृ दोष और कुल की उन्नति के लिए नाग पूजा का विशेष महत्व है ।
नाग हमारे शरीर में मूलाधार चक्र के आकार में स्थित है उनका फन सहस्त्रार चक्र है ।कल्पभेद के अनुसार इनके जन्म के विषय में अनेक कहानियां मिलती है *लिंगपुराण *का मत है की सृष्टिसृजन हेतु प्रयासरत ब्रह्मा जी घोर तपस्या करते हुए हताश होने लगे तो क्रोध बस इनके कुछ अश्रु पृथ्वी पर गिरे और तक्षण सर्प के रूप में उत्पन्न हो गए इन शर्पो के साथ कोई अन्याय न हो ऐसा विचार कर भगवान सूर्य ने इन्हें पंचमी तिथि का अधिकारी बनाया तभी से पंचमी तिथि नागों की पूजा के लिए विदित है इसमें ब्रह्मा ने अष्ट नागो अनंत ,बासुकी ,तक्षक, कर्कोटक, पदम, महापदम, कुलिक ,और शंखपाल की सृष्टि की और इन नागों को भी ग्रहों के बराबर शक्तिशाली बनाया इनमें अनंतनाग सूर्य के , वासुकी चंद्रमा के ,तक्षक मंगल के , कर्कोटक बुद्ध के ,पदम बृहस्पति के ,महापदम शुक्र के, तथा कुलिक और शंखपाल शनि ग्रह के रूप में है ।यह सभी नाग सृष्टि संचालन में ग्रहों के सामान ही भूमिका निभाते हैं। भगवान विष्णु शेषनाग से सैय्या रूप में सेवा लेते हैं, शिव उन्हें अपने कंठ में धारण करते हैं जबकि रुद्र, गणेश और काल भैरव इन्हें यज्ञोपवीत के रूप में धारण करते हैं। इन अष्टनागों में शेषनाग स्वयं पृथ्वी को अपने फन पर धारण करते हैं।
शास्त्रों के अनुसार सभी अष्टनाग अष्ट लक्ष्मी के अनुचर के रूप में जाने जाते हैं इसलिए कहा जाता है कि जहां नाग देवता का वास रहता है वहां लक्ष्मी जरूर रहती है इनकी पूजा अर्चना से आर्थिक तंगी और वंश वृद्धि में आ रही रुकावट से छुटकारा मिलता है नाग पंचमी के दिन नागों की पूजा करके प्राणी सर्प और विष के भय से मुक्त हो सकता है । यदि नाग उपलब्ध न हो तो उनकी मूर्ति बनाकर अथवा शिवलिंग पर स्थापित नाग की पूजा भी की कर सकते हैं।
अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलम् ।
शङ्खपालं धृतराष्ट्रं तक्षकं कालियं तथा ॥ १॥
एतानि नवनामानि नागानां च महात्मनाम् ।
सायङ्काले पठेन्नित्यं प्रातःकाले विशेषतः ॥ २॥
तस्य विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत् ॥ ३॥
॥ श्रीनवनागनामस्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥
शत्रु समन,कोर्ट कचहरी में सफलता और संतान संबंधी चिंता दूर करने के लिए नागों के 9 नाम वाले मंत्र का प्रतिदिन तीन बार पाठ करने से यथोचित लाभ मिलता है नाग गायत्री का जाप करने से भी अभीष्ट कार्य की सिद्धि होती है ज्योतिष संहिता के अनुसार नाग वैदिक ज्योतिष में राहु को काल और केतु को सर्प माना गया है अतः नागों की पूजा करने से मनुष्य की जन्म कुंडली में राहू -केतु जन्य सभी दोष शांत होते हैं कालसर्प दोष तो शान्त होते ही हैं , कालसर्प दोष और विषधारी जीवो के दंश का का भी भय नहीं रहता । नए घर का निर्माण करते समय इन बातों का ध्यान रखते हुए कि परिवार में बंश बृद्धि हो और सुख शांति में साथ-साथ लक्ष्मी की कृपा भी बनी रहे नीव में चांदी का निर्मित नाग _नागनी का जोड़ा रखा जाता है । ग्रामीण अंचलों में नाग पंचमी के दिन लोग अपने अपने दरवाजे पर गाय के गोबर से नाग आकृतियां बनाते हैं और उनकी पूजा करते हैं इस दिन नागों को दूध पिलाने की परंपरा भी सदियों से चली आ रही है
और इसी परंपरा का निर्वहन करते हुए श्री वासुकी नाग के उत्तरकाशी के टकनौर स्थित गोरसाली के प्राचीन मंदिर में विगत 50 वर्षों से अधिक उनके कुल पुरोहित द्वारा सदैव मूल नाग मंदिर में पूजा अर्चना कर नागों की पूजा अर्चना की जाती है जिसमें सभी ग्रामीण एवं परिवारजन सहयोग कर खीर एवं दूध दही से दही मक्खन से पूजा अर्चना करते हैं यह सिलसिला वर्ष उन्नीस सौ 73 से तत्कालीन पुजारी स्वर्गीय पंडित मानपति प्रसाद नौटियाल द्वारा प्रारंभ किया गया था जो अभी अविरल एवं अखण्डितरूप उनके परिजन एवं नौटियाल परिवार तथा समस्त ग्रामवासी बड़े धूमधाम से मनाते आ रहे हैं। जय श्री वासुकी नाग देवता

आभार
पंडित प्रकाश चंद्र नौटियाल शास्त्री
पंडित सुभाष चंद्र नौटियाल

ग्राम—गोरसाली

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